Thursday, 28 January 2021

                               Treatment of Hemorrhoids with the help of Abzan (Sitz Bath)

Sitz comes from a german word ‘Sitzen’ which means to ‘sit’, that’s exactly what you do with this kind of bath. Sitz Bath is quite a traditional practice’ which originated in Europe as part of a rising trend in 1800. A sitz bath is a warm, shallow bath that cleanses the perineum, which is the space between the rectum and the vulva or scrotum. Usually in Sitz Bath warm water is used but cold water can be used as well. Cool sitz baths are said to be helpful in easing constipationinflammation and vaginal discharge, and, in cases of fecal or urinary incontinence, in toning the muscles. Sitz bath work by altering the blood flow to the area immersed in water. Sitz bath is simple safe, cheap and probably effective treatment for the pain, inflammation, swelling and irritation. Sitz bath is commonly prescribed for ano-rectal disorders in conjunction with dietary and pharmacological therapiesA warm sitz bath could be helpful to relieve congestion and edema by aiding venous return from the perianal area. Its major effect is thought to be due to the reductions of spasms by relaxing the anal sphincter pressure, reducing anal pain. It has benefits for patients with elevated anal pressure due to anorectal diseases such as anal fissure or inflamed haemorrhoids, and after surgical operations involving the anus.  It improves hygiene and promotes blood flow to ano-genital area.    




Monday, 25 January 2021

Aroma Therapy

 Aroma therapy

The National Association for Holistic Aromatherapy (NAHA) defines aromatherapy as “The therapeutic application or the medicinal use of aromatic substances (essential oils) for holistic healing.”
 American aromatherapist Jeanne Rose classifies aromatherapy as “The healing of essential oils through the sense of smell by inhalation, and through other application of these therapeutic volatile substances” (Rose 1992). French physician Valnet (1990) writes that aromatherapy involves essences obtained from plants that are generally given “in the form of drops, or capsules.”
The basic reason which accounts for the diversity of conception and application of aromatherapy lies in the very nature of the aromatic substance. Essential oils have many properties which make them highly suitable therapeutic substances:
– The capacity to effect cutaneous penetration quickly and easily.
– Being endowed with the capacity to influence the mind through their powerful impact on the human olfactory system. They were traditionally used in analeptics (an old term denoting a restorative remedy for states of weakness frequently accompanied by faintness and dizziness (Aschner 1986)) to stimulate the olfactory
nerve and the sensory trigeminal nerve endings causing a reflex stimulation of respiration and circulation (Schulz, Hänsel & Tyler 1998 ).
– Having multiple pharmacological properties due to their highly active molecular compounds

Aromatherapy applications include massage, topical applications, and inhalation.
There are many reasons why essential oils need to be included in the armoury of weapons in the fight against the disease. They have many positive properties and effects which are desirable – and few drawbacks. They are capable of being anti-inflammatory, antiseptic, appetite-stimulating, carminative, choleretic, circulation stimulating, deodorizing, expectorant, granulation stimulating, hyperaemic, insecticidal, insect repelling, and sedative (Schilcher 1985 ). They are natural antimicrobial agents able to act on bacteria, viruses, and fungi. Essential oils have been found to aid relaxation effectively, both pre-and postoperatively, to regenerate tissue in cases of severe burns and inflammation, and to relieve pain in cases of rheumatoid arthritis. They have helped to improve the quality of life for the terminally ill and have also found important uses in maternity care. They are used more and more to help people with learning disabilities and in elderly care, particularly with regard to dementia as well as being used extensively to improve or uplift a patient’s state of mind.
 According to the National Association for Holistic Aromatherapy, some of the important essential oils are:
clary sage
cypress
eucalyptus
fennel
geranium
ginger
helichrysum
lavender

Wednesday, 6 May 2020

कोरोना वायरस (CORONA VIRUS) कई प्रकार के विषाणुओं के वारे में।

कोरोना वायरस (Corona virus) कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, मृत्यु) तक हो सकती है। गाय और सूअर में इनके कारण अतिसार हो सकता है जबकि इनके कारण मुर्गियों के ऊपरी श्वास तंत्र के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या विषाणुरोधी (antiviral) अभी उपलब्ध नहीं है और उपचार के लिए प्राणी की अपने प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है। अभी तक रोगलक्षणों (जैसे कि निर्जलीकरण या डीहाइड्रेशन, ज्वर, आदि) का उपचार किया जाता है ताकि संक्रमण से लड़ते हुए शरीर की शक्ति बनी रहे। चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला 2019 नोवेल कोरोनावायरस इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण सन् 2019-20 काल में तेज़ी से उभरकर 2019–20 वुहान कोरोना वायरस प्रकोप के रूप में फैलता जा रहा है। हाल ही में WHO ने इसका नाम COVID-19 रखा
बीमारी के लक्षण?
कोवाइड-19 / कोरोना वायरस में पहले बुख़ार होता है। इसके बाद सूखी खांसी होती है और फिर एक हफ़्ते बाद सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
इन लक्षणों का हमेशा मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फ़ेल होना और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह या हार्ट की बीमारी है उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। ज़ुकाम और फ्लू में के वायरसों में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं।
क्या हैं इससे बचाव के उपाय?
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए. अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है. खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढककर रखें. जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें. अंडे और मांस के सेवन से बचें. जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के मकसद से सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर एडवाइज़री जारी की है.
सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब होता है एक-दूसरे से दूर रहना ताकि संक्रमण के ख़तरे को कम किया जा सके.
क्यों ज़रूरी है सोशल डिस्टेंसिंग?
जब कोरोना वायरस से संक्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके थूक के बेहद बारीक कण हवा में फैलते हैं. इन कणों में कोरोना वायरस के विषाणु होते हैं.
संक्रमित व्यक्ति के नज़दीक जाने पर ये विषाणुयुक्त कण सांस के रास्ते आपके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. अगर आप किसी ऐसी जगह को छूते हैं, जहां ये कण गिरे हैं और फिर उसके बाद उसी हाथ से अपनी आंख, नाक या मुंह को छूते हैं तो ये कण आपके शरीर में पहुंचते हैं. भारत सरकार द्वारा जारी सोशल डिसटेंसिंग एडवायज़री के अनुसार जहां-जहां अधिक लोगों के एक दूसरे के संपर्क में आने की संभावना है उस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिए हैं.
§ सभी शैक्षणिक संस्थानों (स्कूल, विश्वविद्यालय आदि), जिम, म्यूज़ियम, सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्रों, स्विमिंग पूल और थिएटरों को बंद रखने की सलाह दी है. छात्रों को घरों में रहने की सलाह दी गई और उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई करने को कहा गया है.
§ सरकार ने कहा है कि परीक्षाओं को स्थगित करने की संभावना पर विचार किया जा सकता है. फिलहाल चल रही परीक्षाएं ये सुनिश्चित करके करवाई जाएं कि छात्रों के बीच कम से कम एक मीटर की दूरी हो.
§ प्राइवेट क्षेत्र के संस्थान से कहा गया है कि हो सके तो अपने कर्मचारियों से घर से काम करवाएं.
§ संभव हो तो मिटिंग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए करने पर ज़ोर दिया गया है. बहुत ज़रूरी ना हो तो बड़ी बैठकों को स्थगित करने या उनमें लोगों की संख्या को कम करने की बात की गई है.
§ रेस्त्रां को सलाह दी गई है कि वो हैंडवॉश प्रोटोकॉल का पालन करवाएं और जिन जगहों को लोग बार-बार छूते हैं उन्हें ठीक से साफ करते रहें. टेबल के बीच में कम से कम एक मीटर की दूरी रखें.
§ जो शादियां पहले से तय हैं, उनमें कम लोगों को बुलाया जाए और सभी तरह के गैर-ज़रूरी सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया जाए.
§ एक दूसरे से हाथ मिलाने और गले लगने से बचना चाहिए.
§ किसी भी तरह की गैर – ज़रूरी यात्रा ना करें और बस, ट्रेन, हवाई जहाज़ में यात्रा करते वक्त लोगों से दूरी बनाए रखना ज़रूरी है.
§ कमर्शियल एक्टिविटीज़ में लगे लोग ग्राहकों के साथ एक मीटर की दूरी बनाए रखें. साथ ही प्रशासन बाज़ारों में भीड़ कम करने के लिए कदम उठाएं.
§ सभी अस्पतालों को कोविड-19 से जुड़े ज़रूरी प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए. साथ ही परिवार, दोस्तों, बच्चों को अस्पताल में मरीज़ों के पास जाने न दें.
§ ऑनलाइन ऑडरिंग सर्विस में काम करने वालों को ख़ास तौर पर अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए.
भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की वेबसाइट पर कोरोना संक्रमण से जुड़ी हर जानकारी दी गई है. अगर मरीज़ को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही है तो वो भारत सरकार के हेल्पलाइन नंबर +91-11-23978046 या फिर 24 घंटों चलने वाले टोल फ्री नंबर 1075 पर संपर्क कर सकते हैं. देश के विभिन्न राज्यों ने भी नागरिकों के लिए हेल्पलाइन शुरु किए हैं जहां ज़रूरत पड़ने पर फ़ोन किया जा सकता है.
कितना घातक है कोरोना वायरस?
कोरोना वायरस के संक्रमण के आँकड़ों की तुलना में मरने वालों की संख्या को देखा जाए तो ये बेहद कम हैं. हालांकि इन आंकड़ों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन आंकड़ों की मानें तो संक्रमण होने पर मृत्यु की दर केवल एक से दो फ़ीसदी हो सकती है.
फ़िलहाल कई देशों में इससे संक्रमित हज़ारों लोगों का इलाज चल रहा है और मरने वालों का आँकड़ा बढ़ भी सकता है.
56,000 संक्रमित लोगों के बारे में एकत्र की गई जानकारी आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अध्ययन बताता है कि –
§ 6 फ़ीसदी लोग इस वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए. इनमें फेफड़े फेल होना, सेप्टिक शॉक, ऑर्गन फेल होना और मौत का जोखिम था.
§ 14 फ़ीसदी लोगों में संक्रमण के गंभीर लक्षण देखे गए. इनमें सांस लेने में दिक्क़त और जल्दी-जल्दी सांस लेने जैसी समस्या हुई.
§ 80 फ़ीसदी लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण देखे गए, जैसे बुखार और खांसी. कइयों में इसके कारण निमोनिया भी देखा गया.
कोरोना वायरस से मृत्युदर
1. 9 साल तक के बच्चों में- 0 प्रतिशत
2. 10-39 वर्ष तक के लोगों में 0.2 प्रतिशत
3. 40-49 वर्ष तक के लोगों में 0.4 प्रतिशत
4. 50-59 वर्ष तक के लोगों में 1.3 प्रतिशत
5. 60-69 वर्ष तक के लोगों में 3.6 प्रतिशत
6. 60-69 वर्ष तक के लोगों में 3.6 प्रतिशत
7. 70-79 वर्ष तक के लोगों में 8 प्रतिशत
80 से ज्यादा वर्ष के लोगों में 14.8 प्रतिशत

(Dr.syed abdul rasheed
Director: Alunani Medicines
Mohalla qazi sahaswan budaun)

Sunday, 19 April 2020

Hair Loss

                                                           Hair loss

Hair loss can be the result of heredity, hormonal changes, medical conditions or medications. Anyone can experience hair loss, but it's more common in men.

Symptoms :
·       Male-pattern baldness
·       Female-pattern baldness
·       Patchy hair loss (alopecia areata)
·       Traction alopecia
Hair loss can appear in many different ways, depending on what's causing it. It can come on suddenly or gradually and affect just your scalp or your whole body. Some types of hair loss are temporary, and others are permanent.
Signs and symptoms of hair loss may include:
·         Gradual thinning on top of head. This is the most common type of hair loss, affecting both men and women  In men, hair often begins to recede from the forehead in a line that resembles the letter M. Women typically retain the hairline on the forehead but have a broadening of the part in their hair.

·         Circular or patchy bald spots. Some people experience smooth, coin-sized bald spots. This type of hair loss usually affects just the scalp, but it sometimes also occurs in beards or eyebrows.


·         Sudden loosening of hair. A physical or emotional shock can cause hair to loosen. Handfuls of hair may come out when combing or washing your hair or even after gentle tugging. This type of hair loss usually causes overall hair thinning and not bald patches.

·         Full-body hair loss. Some conditions and medical treatments, such as chemotherapy for cancer, can result in the loss of hair all over your body. The hair usually grows back.


·         Patches of scaling that spread over the scalp. This is a sign of ringworm. It may be accompanied by broken hair, redness, swelling and, at times,



Causes

People typically lose about 100 hairs a day. This usually doesn't cause noticeable thinning of scalp hair because new hair is growing in at the same time. Hair loss occurs when this cycle of hair growth and shedding is disrupted or when the hair follicle is destroyed and replaced with scar tissue.
Hair loss is typically related to one or more of the following factors
·         Family history (heredity). The most common cause of hair loss is a hereditary condition called male-pattern baldness or female-pattern baldness. It usually occurs gradually with aging and in predictable patterns — a receding hairline and bald spots in men and thinning hair in women.
·         Hormonal changes and medical conditions. A variety of conditions can cause permanent or temporary hair loss, including hormonal changes due to pregnancy, childbirth, menopause and thyroid problems. Medical conditions include alopecia areata (al-o-PEE-she-uh ar-e-A-tuh), which causes patchy hair loss, scalp infections such as ringworm and a hair-pulling disorder called trichotillomania (trik-o-til-o-MAY-nee-uh).
·         Medications and supplements. Hair loss can be a side effect of certain drugs, such as those used for cancer, arthritis, depression, heart problems, gout and high blood pressure.
·         Radiation therapy to the head. The hair may not grow back the same as it was before.
·         A very stressful event. Many people experience a general thinning of hair several months after a physical or emotional shock. This type of hair loss is temporary.
·         Certain hairstyles and treatments. Excessive hairstyling or hairstyles that pull your hair tight, such as pigtails or cornrows, can cause a type of hair loss called traction alopecia. Hot oil hair treatments and permanents can cause inflammation of hair follicles that leads to hair loss. If scarring occurs, hair loss could be permanent.






Risk factors
A number of factors can increase your risk of hair loss, including:
·         Family history of balding, in either of your parent's families
·         Age
·         Significant weight loss
·         Certain medical conditions, such as diabetes and lupus
·         Stress

Prevention
Most baldness is caused by genetics (male-pattern baldness and female-pattern baldness). This type of hair loss is not preventable.
These tips may help you avoid preventable types of hair loss:
·         Avoid tight hairstyles, such as braids, buns or ponytails.
·         Avoid compulsively twisting, rubbing or pulling your hair.
·         Treat your hair gently when washing and brushing. A wide-toothed comb may help prevent pulling out hair.
·         Avoid harsh treatments such as hot rollers, curling irons, hot oil treatments and permanents.
·         Avoid medications and supplements that could cause hair loss.
·         Protect your hair from sunlight and other sources of ultraviolet light.
·         Stop smoking. Some studies show an association between smoking and baldness in men.
·         If you are being treated with chemotherapy, ask your doctor about a cooling cap. This cap can reduce your risk of losing hair during chemotherapy.

Diet which prevent hair loss

·         Protein Deficiency
·         Biotin Deficiency
·         Zinc
·         Vitamin C
·         Vitamin D
·         Vitamin E
·         Iron Rich diet


Written by : Dr. syed  Abdul Rasheed(Director Alunani Medicines)

Friday, 9 November 2018

लिवर एबसेस




लीवर हमारे शरीर का मुख्य अंग है और इसमें किसी तरह की समस्या हो जाने पर शरीर की कार्यक्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ता है . लिवर एबसेस  को आम बोल चाल के भाषा में जिगर का फोड़ा कहते है ,इससे संक्रमित रोगी के जिगर में सिकुड़न पैदा होती है और फिर उसमें फोड़ा निकल आता है। Liver में उत्पन्न होने वाला यह फोड़ा जब पक जाता है तो रोग सांघातिक हो जाता है। इसके बाद ऑपरेशन करने की नौबत आ जाती है लेकिन अधिकतर देखा गया है इस रोग से पीड़ित रोगी का ऑपरेशन करने पर अधिकतर रोगियों की मृत्यु हो जाती है। जिगर में घाव होने से इससे निकलने वाला दूषित द्रव खून में मिलकर खून को गन्दा कर देता है, जिससे शरीर कमजोर और रोगग्रस्त हो जाता है। इस दौरान लीवर में बहुत अधिक मात्रा में मवाद भी एकत्रित हो जाती है .

लिवर एबसेस के कारण –

·         पेट में किसी तरह का संक्रमण या इन्फेक्शन होना

·         आंत्र छिद्र का होना

·         पित्त ट्यूबो में संक्रमण

·         लीवर में किसी चोट का लगना

·         खान पान सही ना होने की वजह से कई बार यह समस्या होती है .

लिवर एबसेस के लक्षण –

इसके लक्षण आमतौर पे लोगो को समझ नहीं आते क्योकि वो इसे पेट दर्द समझ लेते है जबकिऐसा नहीं है .


·         भूख में कमी – जब लीवर सही तरीके से काम नहीं करता और इसमें फोड़ा होता है तो भूख में कमी आने लगती है और जी मचलता रहता है .

·         पेट दर्द – वैसे कई सारे सामान्य कारण भी है जिनकी वजह से पेट दर्द होता है लेकिन अगर आपको हमेशा पेट दर्द बना रहता है और कई बार यह भयानक हो जाता है तो आपको इसका इलाज करवाना चाहिए .

·         पीलिया – पीलिया एक लीवर से सम्बंधित रोग है और लीवर के कमजोर होने पर पीलिया होता है इसीलिए अगर आपको पीलिया की समस्या हुई है तो एक बार आपको इसकी जांच भी करानी चाहिए .

·         मूत्र में गाढ़ापन – पेशाव में गाढ़ापन इसका मुख्य लक्षण है और यह लीवर के सही तरीके से काम ना करने की वजह से होता है .

·         वजन घटना – लगातार वजन का घटना या वजन का बढना भी इसका लक्षण है और आमतौर पे वजन घटता है इसीलिए आप इसकी जांच अवश्य कराये जिससे इससे समय रहते निजात मिल जाएँ .

·         क्ले रंग का रक्त – कोई चोट लगने पर अगर आपके शरीर से क्ले रंग का रक्त निकल रहा है तो यह लीवर में फोड़ा होने के लक्षण है .

·         रात को पसीना या बुखार – रात को पसीना आना और सामान्य से अधिक आना और इसके साथ बुखार और ठंड इस रोग के लक्षण है और आपको इसका इलाज करवाना चहिये .



लिवर एबसेस के टेस्ट –

·         पेट का सीटी स्कैन करके इसकी जांच की जा सकती है

·         पेट का अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है

·         बैक्टीरिया के लिए रक्त का कल्चर परीक्षण

·         लीवर बायोप्सी

·         लीवर इन्फेक्शन परीक्षण

·         सीबीसी

इलाज –

उपचार में आमतौर पर फोड़ा निकालने के लिए त्वचा के अन्दर से एक ट्यूब डाली जाती है. सर्जरी की अक्सर कम आवश्यकता पड़ती है. आप को लगभग 4 से 6 सप्ताह तक एंटीबायोटिक दवाएं लेनी होंगी. कभी-कभी, एंटीबायोटिक केवल संक्रमण का इलाज कर सकते हैं.

इसमें जान का भी जोखिम होता है. मृत्यु के लिए जोखिम उन लोगों में अधिक होता है जिनको कई यकृत फोड़े होते हैं. इसकी वजह से बहुत ही खतरनाक लीवर की सेप्सिस हो सकती है.

Tuesday, 21 August 2018

गठिया



गठिया

अर्थराइटिस जोड़ों में होने वाली एक बहुत ही आम बीमारी है। इस बीमारी में जोड़ों में दर्द होता है और जोड़ों को घुमाने, मोड़ने, हिलाने और हरकत करने में परेशानी होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक सौ से भी अधिक किस्म के अर्थराइटिस होते हैं। अर्थराइटिस से व्यक्ति की रोज़मर्रा की जीवनशैली बुरी तरह प्रभावित होती है। यह जीवन भर सताने वाली बीमारी होती है। बीमारी अधिक बढ़ने पर मरीज के जोड़ों में असहनीय पीड़ा होती है और हाथ–पांव हरकत करना तक बंद कर देते हैं।

किस तरह से दिखता है गठिया?

पैरों के अंगूठों में सूजन पैरों में गठिया का असर सबसे पहले देखने को मिलता है। अंगूठे बुरी तरह से सूज जाते हैं और तब तक ठीक नहीं होते जब तक की उनका इलाज ना करवाया जाए। उंगलियों के जोड़ में यूरिक एसिड के क्रिस्‍टल जमा हो जाते हैं। इससे उंगलियों के जोडो़ में बहुत दर्द होता है जिसके लिये डॉक्‍टर का उपचार लेना पड़ता है।

दर्द से भरी कुहनियां गठिया रोग कुहनियां तथा घुटनों में हो सकता है। इसमें कुहनियां बहुत ही तकलीफ देह हो जाती हैं और सूजन से भर उठती हैं।

कैसा हो आहार

संतुलित और सुपाच्य आहार लें। चोकर युक्त आटे की रोटी तथा छिलके वाली मूंग की दाल खाएं। हरी सब्जियों में सहिजन, ककड़ी, लौकी, तोरई, पत्ता गोभी, गाजर, आदि का सेवन करें। दूध और उससे बने पदार्थों का सेवन करें। दवाइयों से ठीक करें गठिया अगर दर्द ज्‍यादा बढ़ गया हो तो डॉक्‍टर को दिखा कर दवाइयां खाएं। यह सूजन और दर्द को कम करती हैं तथा खून में यूरिक एसिड की मात्रा को कम करके जोडो़ में इसे जमा होने से बचाती हैं।

गठिया के लक्षण

गठिया के किसी भी रूप में जोड़ों में सूजन दिखाई देने लगती है। इस सूजन के चलते जोड़ों में दर्द, जकड़न और फुलाव होने लगता है। रोग के बढ़ जाने पर तो चलने-फिरने या हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है। इसका प्रभाव प्राय घुटनों, नितंबों, उंगलियों तथा मेरू की हड्डियों में होता है उसके बाद यह कलाइयों, कोहनियों, कंधों तथा टखनों के जोड़ भी दिखाई पड़ता है।

Sunday, 19 August 2018

Hyperlipidaemia


FART  TASHAHHUM AL-DAM   (HYPERLIPIDAEMIA)

FART  TASHAHHUM AL-DAM   (Hyperlipidaemia) is a condition characterized by abnormally elevated levels of lipids and/or lipoproteins  in the blood. It makes the patients susceptible to accelerated atherosclerosis leadings to cardiovascular diseases and stroke.
 Hyperlipidemias are divided into primary and secondary subtypes. Primary hyperlipidemia is usually due to genetic causes (such as a mutation in a receptor protein), while secondary hyperlipidemia arises due to other underlying causes such as diabetes. Lipid and lipoprotein abnormalities are common in the general population and are regarded as modifiable risk factors for cardiovascular diseasedue to their influence on atherosclerosis. In addition, some forms may predispose to acute pancreatitis.

Risk factor   

Family history
Obesity
Junk food
Alcohol and tobacco
Lack of physical activity
Fat and carbohydrate-rich diet
Stress and anxiety
Middle and old age

Clinical features
Asymptomatic
Hyperlipidemia has no symptoms, so the only way to detect it is to have your doctor perform a blood test called a lipid panel or a lipid profile. This test determines your cholesterol levels. Your doctor will take a sample of your blood and send it to a lab for testing, then get back to you with a full report. Your report will show your levels of:
total cholesterol
low-density lipoprotein (LDL) cholesterol
high-density lipoprotein (HDL) cholesterol
triglycerides

Complications
Coronary artry disease (CAD)
Heart attack
Stroke

Prevention
Get regular lipid profile test
Reduce saturated fat intake
Maintain healthy life style
Exercise for 45 minutes daily at least five days a week
Make a habit of sound sleep for 6-8hour
Restrict salt intake to<5gm/day

Avoid
Tobacco and alcohol
Junk and smoked foods
Red,dried and salted meat & fish
Mental stress and anxiety

Mangement
Unani medicine offers following  therapies for the management of the disease
Illaj bil ghidha  (dieto-therapy)
Eat a heart-healthy diet
Making changes to your diet can lower your “bad” cholesterol levels and increase your “good” cholesterol levels. Here are a few changes you can make:
Choose healthy fats. Avoid saturated fats that are found primarily in red meat, bacon, sausage, and full-fat dairy products. Choose lean proteins like chicken, turkey, and fish when possible. Switch to low-fat or fat-free dairy. And use monounsaturated fats like olive and canola oil for cooking.
Cut out the trans fats. Trans fats are found in fried food and processed foods, like cookies, crackers, and other snacks. Check the ingredients on product labels. Skip any product that lists “partially hydrogenated oil.”
Eat more omega-3s. Omega-3 fatty acids have many heart benefits. You can find them in some types of fish, including salmon, mackerel, and herring. They can also be found in some nuts and seeds, like walnuts and flax seeds.
Increase your fiber intake. All fiber is heart-healthy, but soluble fiber, which is found in oats, brain, fruits, beans, and vegetables, can lower your LDL cholesterol levels.
Learn heart-healthy recipes. Check out the American Heart Association’s recipe page for tips on delicious meals, snacks, and desserts that won’t raise your cholesterol.
Eat more fruits and veggies. They’re high in fiber and vitamins and low in saturated fat.

Cucumber, bottle gourd, ridge gourd, water melon,grapes
Khall (vinegar)
Ma al-jubn (whey)
Ilaj bil dawa (pharmacotherapy)
If lifestyle changes aren’t enough to treat your hyperlipidemia, your doctor may prescribe medication. Common cholesterol- and triglyceride-lowering medications include:
statins, such as:
atorvastatin (Lipitor)
fluvastatin (Lescol XL)
lovastatin (Altoprev)
pitavastatin (Livalo)
pravastatin (Pravachol)
rosuvastatin (Crestor)
simvastatin (Zocor)
bile-acid-binding resins, such as:
cholestyramine (Prevalite)
colesevelam (WelChol)
colestipol (Colestid)
cholesterol absorption inhibitors, such as ezetimibe (Zetia)
injectable medications, such as alirocumab (Praluent) or evolocumab (Repatha)
fibrates, like fenofibrate (Fenoglide, Tricor, Triglide) or gemfibrozil (Lopid)
niacin (Niacor)
omega-3 fatty acid supplements
other cholesterol-lowing supplements

single unani drugs
Arjun
Muqil
Zanjabil
Zira siyah
Darchini

Compound drugs
Majun shir alvi khani
Arq zira
Safuf muhazzil

Ilaj bil tadber (regimenal therapy)

Riyadat (exercise)
Hammam (turkish bath)
Fasad(venesection)